
जय हिंद जय भारत
किसान भाइयों के आत्महत्याएँ
सुमन सौरभ चंद्रवंशी
एक मौन जो सब कुछ कह जाता है
भारत में किसान आत्म हत्याएँ अब कोई आँकड़ा भर नहीं रह गईं, बल्कि हमारे समय की सबसे गहरी सामाजिक त्रासदियों में बदल चुकी हैं। जब भी हम अख़बारों या रिपोर्टों में यह खबर पढ़ते हैं, तो संख्याएँ हमारे सामने आती हैं—लेकिन उन संख्याओं के पीछे टूटी हुई ज़िंदगियों की चीख़ें अक्सर दब जाती हैं।किसी किसान का जाना केवल उसकी ज़िंदगी का अंत नहीं होता, बल्कि उसके परिवार की नींव हिल जाती है। सबसे गहरी चोट उन बच्चों पर पड़ती है, जिनकी मासूम आँखों से अचानक सपनों का उजाला बुझ जाता है। खेत में बोए गए बीज की तरह उनके सपने अधूरे रह जाते हैं।मुझे वर्ष 2015 में यह दर्द प्रत्यक्ष रूप से देखने और महसूस करने का अवसर मिला, जब मैं औरंगाबाद, महाराष्ट्र,स्थित श्री साईं ग्रामीण संस्थान पहुँचा। वहाँ मैंने उन बच्चों की आँखों में झाँका, जिनके पिता ने मजबूरी और कर्ज़ के बोझ तले आत्महत्या कर ली थी। उनकी आँखों में दर्द, सवाल और अधूरे सपनों की खामोश कहानियाँ झलक रही थीं। वह यात्रा मेरे जीवन की सबसे गहरी भावनात्मक अनुभूतियों में से एक बन गई—एक ऐसा अनुभव, जिसने मुझे भीतर तक झकझोर दिया और इस सवाल के सामने खड़ा कर दिया कि क्या हम, एक समाज के रूप में सचमुच अपने अन्नदाताओं के परिवारों के साथ खड़े हैं?


क्लासरूम की पहली झलक
जब मैं उस कमरे में पहुँचा जिसे बच्चे अपना क्लासरूम कहते थे, तो मैं कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया।करीब पचास से अधिक बच्चे ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। फर्श पर साधारण चटाइयाँ बिछी थीं, दीवारों का पलस्तर जगह-जगह उखड़ चुका था और सामने एक पुराना ब्लैकबोर्ड था। न लकड़ी की बेंच, न आरामदायक डेस्क, न ही आधुनिक सुविधाओं वाले क्लासरूम—फिर भी कमरे में एक अजीब-सी ऊर्जा थी।किताबों में डूबे बच्चों के चेहरों पर एक अजीब गंभीरता झलक रही थी। ऐसा लगता था मानो जीवन ने इन्हें उनकी उम्र से कहीं पहले परिपक्व बना दिया हो। जिस उम्र में बच्चों को खिलौनों से खेलना चाहिए, उस उम्र में ये कठिनाइयों के बीच खुद को संभालना सीख रहे थे।
Untold Stories
सपनों का बोझ और उम्मीद की प्यास मेरे सामने बैठे बच्चों की बातें किसी भी आम बच्चे जैसी थीं – कोई डॉक्टर बनना चाहता था, कोई इंजीनियर, कोई पुलिस अधिकारी और कोई पायलेट । •शिक्षा की चुनौती: सीमित शिक्षक और संसाधनों के कारण बच्चों को बुनियादी शिक्षा ही कठिनाई से मिल पाती थी ।•भोजन और स्वास्थ्य: भोजन अक्सर दान पर निर्भर होता था । दवाइयाँ और स्वास्थ्य सुविधाएँ कभी-कभी महीनों तक उपलब्ध नहीं हो पातीं।•आश्रय और सुरक्षा: एक साधारण इमारत में बच्चे एक साथ रहते हैं। जगह की कमी है, लेकिन मन का स्नेह जगह को बड़ा बना देता है।•फिर भी इन बच्चों की आँखों में चमक है। वे जानते हैं कि उनके सपनों के पीछे एक ऐसा गुरु खड़ा है जो उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।


इस पूरी कहानी के केंद्र में हैं श्यामसुंदर गुरुजी। पेशे से शिक्षक, पर आत्मा से संत। वे कहते हैं –अब जो सपना इन बच्चों का है, वही मेरा सपना और ज़िंदगी है।”करीब एक दशक पहले जब उन्होंने किसानों के आत्महत्या करने के बाद अनाथ हो चुके बच्चों को सड़कों पर भटकते देखा, तो मन भीतर से टूट गया। उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि इन बच्चों को अपना परिवार देंगे। उस समय उनके संस्थान में 204 बच्चे रहते थे। वे भोजन, कपड़े, पढ़ाई और आश्रय सबका इंतज़ाम करते थे। उनके चेहरे पर पिता-सा स्नेह और आँखों में शिक्षक-सी सख़्ती दोनों था । महाराष्ट्र में करीब 10,000 बच्चे ऐसे थे जो किसान आत्महत्याओं के बाद भटक रहे थे । वे या तो रिश्तेदारों के घर शरण लेते थे या सड़क पर मज़दूरी करने को मजबूर होते थे। बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए योग्य शिक्षकों और सहयोगियों की भारी कमी था ।अभी तक किसी बड़ी सरकारी योजना से इन्हें प्रत्यक्ष सहयोग नहीं मिल पाया था ।अगर इन बच्चों को समय रहते शिक्षा और संरक्षण नहीं मिला तो यह पूरी पीढ़ी अपराध, गरीबी और शोषण के अंधेरे में धकेल दी जाएगी। यह सिर्फ़ एक संस्थान की ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती, बल्कि पूरे समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है।
उस समय मैंने खुद से पूछा—“क्या सचमुच हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ अन्नदाता की संतानें इतनी बेबस हों?”मेरा मन बार-बार यही कह रहा था कि हमने इन बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। जिन किसानों ने हमारे लिए खेतों में अन्न उगाया, उनके अपने बच्चे शिक्षा और सुरक्षा की बुनियादी ज़रूरतों से वंचित रह गए। क्लासरूम का हर कोना मुझे यही संदेश दे रहा था कि सपनों की कोई कमी नहीं है, कमी केवल साधनों की है।उन मासूम आँखों ने मुझे सिखाया कि जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद की लौ बुझती नहीं, बस उसे सहारा चाहिए। 2015 की उस यात्रा का असर आज भी मेरे दिल और दिमाग़ पर गहरा है। उस दिन से अब तक, जब भी मैं किसी किसान की आत्महत्या की खबर सुनता हूँ, तो उन मासूम आँखों का प्रश्न मेरे कानों में गूंज उठता है “क्या आप भी हमें बस देखने आए हैं, या सचमुच कुछ बदलने?


अगर बच्चों को सही शिक्षा मिल जाए तो वे न केवल अपने जीवन को बदलेंगे बल्कि समाज को भी दिशा देंगे।उनकी योजना है की संस्थान को एक आवासीय विद्यालय का रूप दिया जाए।हर बच्चे को परवरिश की सुरक्षा मिले।
मेरी यात्रा साल 2015 की वह यात्रा मेरे जीवन की स्मृतियों में आज भी उतनी ही जीवंत है, जैसे यह कल की ही बात हो। उस दिन जब मैंने औरंगाबाद, महाराष्ट्र,के छोटे से कस्बे में स्थित श्री साईं ग्रामीण संस्थान के परिसर में कदम रखा तो मुझे यह अंदाज़ा नहीं था कि वहाँ बिताए गए कुछ घंटे मेरी सोच, संवेदनाओं और जीवन-दृष्टि को हमेशा के लिए बदल देगा। एक आंकड़ा बताता है कि पूरे भारत में प्रत्येक दिन 46 से 60 किसान आत्म हत्या करता है महाराष्ट्र में हजारों हजार की संख्या में किसान आत्म हत्या किया पर सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा इनमें सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र की है, जहाँ हजारों किसान कर्ज़, मौसम और सरकारी उदासीनता के बीच अपनी जान गँवा चुके हैं। क्या यह महज़ आँकड़े हैं या फिर ये आँकड़े उस रक्त और पसीने से उपजे हैं, जो खेतों में अन्न बनकर हमारी थाली तक पहुँचता है?भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहाँ लगभग आधी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है, वहाँ किसानों की आत्महत्या केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि राष्ट्रीय शर्म है। वर्ष दर वर्ष रिपोर्टें बताती हैं कि लाखों किसान या तो कर्ज़ के बोझ तले दबे हैं या प्राकृतिक आपदाओं और बाज़ार की असमानताओं से जूझ रहे हैं। महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र की बात करें तो वहाँ हजारों किसानों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े सुनकर ही हृदय काँप उठता है। इन इलाकों में कभी हरियाली और मेहनत की कहानियाँ सुनाई देती थीं, आज वहीं से मौत की खबरें आती हैं। किसानों की आत्महत्या का कारण केवल प्राकृतिक आपदा या फसल का खराब होना नहीं है। यह एक बहुआयामी संकट है सरकारें भी आँकड़े गिनती रहीं, रिपोर्ट बनाती रहीं, लेकिन किसानों की असली समस्या—कर्ज़ और भविष्य की सुरक्षा—का समाधान कभी प्राथमिकता में नहीं आया। राहत पैकेजों की घोषणाएँ हुईं, लेकिन उन पैसों का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार और प्रशासनिक देरी में खो गया। क्या यह विडंबना नहीं है कि जिस किसान के कंधों पर देश की खाद्य सुरक्षा टिकी है, उसकी मौत इस देश की राजनीति को शायद ही हिला पाती है? सरकारों के लिए किसान आत्महत्या महज़ एक “डेटा” रह गया, कोई मानवीय आपदा नहीं।
जय बिहार क्रांति पदयात्रा
एक समाज ,एक संघर्ष,एक संकल्प
यात्रा की शुरुआत: लाल किला से क्रांति की ओर
जय बिहार क्रांतिपद यात्रा की शुरुआत एक अत्यंत प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक स्थल, लाल किला (दिल्ली) से की गई—वही स्थल जहाँ से अपने स्वतंत्र भारत के भविष्य, दिशा और संकल्पों की घोषणाएँ होती रही हैं। इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के समक्ष खड़े होकर सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने 28 सितंबर 2023 को मध्य रात्रि 12:10 बजे यह संकल्प लिया कि वे उन प्रवासी श्रमिक भाइयों और परिवारों के संघर्ष को सार्वजनिक स्मृति में जीवित रखेंगे, जिन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने बच्चों को कंधों पर उठाकर, हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय की थी।यह आरंभ केवल एक यात्रा की भौतिक शुरुआत नहीं थी, बल्कि यह संवेदना से जन्मे एक सामाजिक आंदोलन की प्रारंभिक उद्घोषणा थी। लाल किला जैसे राष्ट्रीय प्रतीक से यात्रा प्रारंभ करने का निर्णय इस बात का संकेत था कि यह आंदोलन किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा से जुड़े उपेक्षित वर्गों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाने का प्रयास था।सुमन सौरभ चंद्रवंशी द्वारा लिया गया यह संकल्प अपने स्वतंत्र भारत के इतिहास और वर्तमान सामाजिक संरचना के मध्य एक संवेदनशील पुल के रूप में कार्य करता है, जहाँ भूतकाल की प्रेरणा वर्तमान की पीड़ा से जुड़कर जनचेतना का स्वरूप ग्रहण करती है।

जय बिहार क्रांति पदयात्रा:
एक संघर्ष,एक संकल्प, एक समाज
जय बिहार क्रांति पदयात्रा एक सामाजिक चेतना और जनसंवाद पर आधारित पदयात्रा थी, जिसका आयोजन बिहार के युवा सामाजिक कार्यकर्ता सुमन सौरभ चंद्रवंशी द्वारा किया गया। इस पदयात्रा का मूल उद्देश्य कोविड-19 महामारी के दौरान देशभर—के प्रवासी श्रमिकों भाइयों द्वारा झेले गए संघर्षों, पीड़ाओं और उपेक्षा को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना और उसे समाज के सम्मुख सहानुभूति और संवेदना के साथ प्रस्तुत करना था।इस यात्रा की शुरुआत 28 सितंबर 2023 को दोपहर 12:10 बजे, अपने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक स्थल लाल किला, दिल्ली से हुई। यह कोई सामान्य पदयात्रा नहीं थी, बल्कि एक निजी संकल्प की सार्वजनिक अभिव्यक्ति थी—एक ऐसा संकल्प जो कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों द्वारा किए गए हजारों किलोमीटर के पैदल सफर से प्रेरित था।यात्रा में श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने न केवल भौगोलिक दूरी तय की, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों—किसानों, श्रमिकों, युवाओं, अल्पसंख्यकों और ग्रामीण परिवारों—से संवाद स्थापित किया। उनका उद्देश्य था कि उन असंख्य कदमों की आवाज़ को मंच मिले, जो संकट के समय चुपचाप जीवन की जंग लड़ रहे थे।जय बिहार क्रांति पद यात्रा को एक जनआंदोलन के प्रतीक के रूप में देखा गया, जहाँ संवेदना, साहस, और सामाजिक न्याय की भावना केंद्र में थी। इस यात्रा ने यह प्रमाणित किया कि एक सामान्य नागरिक भी, बिना किसी राजनीतिक समर्थन के, समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों की पीड़ा को स्वर दे सकता है, और परिवर्तन की दिशा में पहल कर सकता है।

उन सभी जन प्रतिनिधि को हृदय से धन्यवाद जिन्होंने जय बिहार क्रांति पद यात्रा में भाग लिए और सहयोग किए है और सफल बनाने में मदद किए है।
यात्रा विवरण
प्रारंभ तिथि: 28 सितंबर 2023
समापन तिथि: 18 अक्टूबर 2023•प्रारंभ स्थल: लाल किला, दिल्ली
निर्धारित गंतव्य: सीतामढ़ी, बिहार


2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान भारतभर में लॉकडाउन लगने के बाद करोड़ों प्रवासी मजदूर भाइयों, अपने परिवारों सहित दिल्ली, मुंबई, राजस्थान जैसे महानगरों से हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गृह राज्यों तक पहुँचे। इन कठिन परिस्थितियों ने देश के सामाजिक ताने-बाने को झकझोर दिया। इन्हीं प्रवासी मजदूरों के प्रति सहानुभूति और एकात्मता व्यक्त करने हेतु सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने इस पदयात्रा की योजना बनाई।





जय बिहार क्रांति पदयात्रा
जय बिहार क्रांति पद यात्रा एक सामाजिक और जनचेतनात्मक यात्रा थी, जिसका आयोजन बिहार के सामाजिक कार्यकर्ता सुमन सौरभ चंद्रवंशी द्वारा किया गया था। इस पदयात्रा का उद्देश्य कोविड-19 महामारी के दौरान बिहार और भारत के अन्य राज्यों के प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और संघर्ष को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना और उस दर्द को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना था।



जय बिहार क्रांति पदयात्रा प्रारंभ से पूर्व आध्यात्मिक आशीर्वाद और अतुलनीय सहयोग
यात्रा प्रारंभ से पूर्व आध्यात्मिक संबल जय बिहार क्रांति पदयात्रा के शुभारंभ से पूर्व मैंने चांदनी चौक स्थित शिव मंदिर, प्राचीन जैन मंदिर और ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री सीस गंज साहिब में जाकर विधिवत पूजा-अर्चना, प्रार्थना एवं अरदास की। यह तीनों पवित्र स्थल न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, अपितु एक आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी हैं, जहां पहुंचकर मन स्थिर और प्रेरित हो जाता है। इन तीर्थस्थलों से मुझे वह मानसिक और आत्मिक बल प्राप्त हुआ, जिसने आगे की कठिन यात्रा को सहज बना दिया।गुरुद्वारे में दर्शन के उपरांत, मैंने एक पवित्र प्रतीक “कड़ा” अपने दाहिने हाथ में धारण किया, जो आज भी मेरे साथ यात्रा की स्मृति और सिख परंपरा के अद्वितीय सहयोग का साक्षी है। यह कड़ा मेरे लिए केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, अपितु एक नैतिक संबल है, जो मुझे सच्चाई, सेवा और समर्पण के मार्ग पर अग्रसर रहा।जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान दिल्ली से लेकर बिहार तक के मार्ग में सिख समुदाय का योगदान अत्यंत प्रेरणादायक और स्मरणीय रहा।अनेक स्थानों पर गुरुद्वारों ने न केवल मुझे और मेरी टीम को विश्राम की सुविधा प्रदान की, अपितु गुरु का अटूट लंगर भी प्रेमपूर्वक परोसा। गुरुद्वारों में मिलने वाले इस सत्कार और समता के व्यवहार ने मुझे गहराई से प्रभावित किया।विशेष रूप से यह देखकर हर्ष हुआ कि गुरुद्वारे केवल श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, अपितु हर राहगीर,किसी भी पथिक के लिए समान रूप से खुले रहते हैं। गुरुद्वारों में मैंने यह अनुभव किया कि कोई भेदभाव नहीं होता वहां आने वाला हर व्यक्ति समान रूप से स्नान करता है, स्वच्छ होता है, लंगर ग्रहण करता है और विश्राम करता है। यह सेवा निःस्वार्थ भाव से गुरुद्वारा प्रबंधन द्वारा निरंतर की जाती है।
किसान का असाधारण सहयोग: एक प्रेरणादायक प्रसंग
जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान एक अद्वितीय और हृदयस्पर्शी घटना घटी, जब श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी की यात्रा में एक स्थानीय किसान चाचा ने अत्यंत संवेदनशील और सतर्क भूमिका निभाई। यह घटना उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा के समीप एक ग्रामीण क्षेत्र की है, जहाँ रात्रि के लगभग 2:00 बजे सुमन सौरभ चंद्रवंशी पदयात्रा कर रहे थे।पूर्व सूचना मिलने पर कि एक सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली से बिहार तक पैदल यात्रा कर रहे हैं, उक्त किसान ने मानवीय संवेदना और सुरक्षा की दृष्टि से विशेष उपाय किए। उन्होंने न केवल रात्रि में स्वयं खेत में बैठकर सुमन सौरभ चंद्रवंशी की प्रतीक्षा की, अपितु अपने समस्त पशुओं—गाय एवं बछड़ों—को सड़क पर छोड़ दिया ताकि किसी भी वाहन की आवाजाही बाधित रहे और सुमन सौरभ चंद्रवंशी सुरक्षित रूप से आगे बढ़ सकें। यह स्थिति लगभग 10 किलोमीटर तक बनी रही।जब सुमन सौरभ चंद्रवंशी किसान चाचा से मिले, तब किसान चाचा ने उन्हें चाय एवं जल ग्रहण करने का आग्रह किया और विश्राम हेतु एक चारपाई की भी व्यवस्था की। किंतु सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने विश्राम करने से विनम्रता पूर्वक इनकार कर दिया और किसान चाचा के साथ कृषि एवं ग्रामीण जीवन की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की। यह संवाद न केवल यात्रा का एक महत्वपूर्ण सामाजिक पड़ाव बना, बल्कि यह ग्रामीण जनता और एक सामाजिक कार्यकर्ता के बीच परस्पर विश्वास, सम्मान और सहयोग का प्रतीक भी सिद्ध हुआ।


कुर्सी (बाराबंकी) में जनसमर्थन और आत्मीय स्वागत
जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान जब श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद स्थित कुर्सी कस्बे पहुँचे, तब रात्रि के लगभग 10:00 बजे थे। वहाँ पहले से ही अनेक युवा सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्थानीय नागरिक उनका स्वागत करने हेतु प्रतीक्षारत थे। रात का समय होने के बावजूद, कुर्सी के युवाओं ने अपने आत्मीय व्यवहार और सामाजिक चेतना का परिचय देते हुए तब तक विश्राम नहीं किया जब तक श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने वहाँ से बाराबंकी के लिए प्रस्थान नहीं किया।उन युवाओं ने सादर मिठाइयाँ, फल एवं विविध प्रकार के भोजन की व्यवस्था की, जिसे सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने सहर्ष ग्रहण किया। यह क्षण न केवल सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक था, बल्कि इसने युवाओं में सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता को भी प्रदर्शित किया।इसी क्रम में जब वे कुर्सी चौक पर पहुँचे, तब वहाँ उपस्थित नागरिकों को यह ज्ञात हुआ कि श्री चंद्रवंशी ने अभी भोजन नहीं किए है। इस पर उन्होंने तत्काल फल लाकर प्रस्तुत किए। सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने उनमें से एक फल स्वीकार कर खाया और शेष आदरपूर्वक लौटा दिया। यह घटना सांप्रदायिक समरसता, आपसी सहयोग और पारस्परिक सम्मान का अद्भुत उदाहरण था।उसी स्थान पर रात्रि विश्राम की व्यवस्था की गई थी, जहाँ सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने अत्यंत साधारण लेकिन गरिमामय वातावरण में विश्राम किए। यह प्रसंग न केवल उनकी पदयात्रा का एक महत्वपूर्ण सामाजिक अध्याय था, बल्कि इससे जनता के बीच उनके प्रति आदर, अपनत्व और सामाजिक जागरूकता की भावना भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
सामाजिक संवाद और भावनात्मक अभिव्यक्ति
जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी की भेंट मार्ग में एक कृषक से हुई। उक्त किसान ने उत्तर प्रदेश में वर्तमान शासन व्यवस्था के संदर्भ में अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्हें जीवन-यापन में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना था कि राज्य में योगी आदित्यनाथजी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद, उन्हें बिना किसी स्पष्ट कारण के बार-बार प्रशासनिक अथवा सामाजिक स्तर पर प्रताड़ना का अनुभव हुआ है।जब श्री सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने उनसे कारण जानना चाहा, तो उन्होंने भावुक स्वर में उत्तर दिया कि उनकी "गलती" केवल यही है कि वे एक यादव हैं और पिछड़े वर्ग से आते हैं। संवाद के दौरान उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, जो उनके भीतर की पीड़ा और सामाजिक अवहेलना की गहरी छाप को दर्शा रही थी।इसी प्रकार की भावनाएँ अल्पसंख्यक समुदाय के कई अन्य व्यक्तियों द्वारा भी प्रकट की गईं। उन्होंने भी राज्य में सामाजिक भेदभाव एवं असमान व्यवहार की शिकायतें व्यक्त कीं। यह प्रसंग इस यात्रा के दौरान सामने आए सामाजिक यथार्थ, वर्गीय असंतुलन और प्रशासनिक व्यवहार के प्रति जनमानस की संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है।

जय बिहार क्रांति पद यात्रा का मूल उद्देश्य
सामाजिक संवेदनाओं को जाग्रत करना एवं श्रमिक वर्ग, विशेषतः प्रवासी मजदूरों दोस्तो, के संघर्षों को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना था। इस यात्रा के माध्यम से सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों को समाज के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया:1.प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का प्रत्यक्ष अनुभव:कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान जब लाखों प्रवासी श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों से अपने गृह राज्य बिहार तथा अन्य स्थानों की ओर पैदल लौटे, तब उन्हें जिस शारीरिक, मानसिक और सामाजिक पीड़ा से गुजरना पड़ा, उस अनुभव को प्रत्यक्ष रूप से समझने और आत्मसात करने हेतु यह यात्रा की गई।2.सामाजिक संवेदनशीलता का विकास:समाज में श्रमिक वर्ग के प्रति सहानुभूति, करुणा और जागरूकता उत्पन्न करने का प्रयास किया गया, जिससे आमजन इन वर्गों की उपेक्षित स्थिति को समझ सकें और उनके अधिकारों के समर्थन में खड़े हो सकें।3.नीतिगत ध्यानाकर्षण:यात्रा का उद्देश्य राज्य एवं केंद्र सरकार का ध्यान प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों की समस्याओं, अधिकारों और सुरक्षा की ओर आकृष्ट करना था, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं के समय वे उपेक्षा के शिकार न हों।4.त्याग और संघर्ष की अभिव्यक्ति:इस यात्रा के माध्यम से उन प्रवासी श्रमिकों के त्याग, संघर्ष और पीड़ा को सामाजिक विमर्श का हिस्सा बनाने का प्रयास किया गया, जिन्हें इतिहास अक्सर अनदेखा कर देता है।5.श्रमिकों के लिए सामाजिक चेतना का निर्माण:बिहार सहित पूरे देश में श्रमिक वर्ग के लिए एक सहानुभूतिपूर्ण सामाजिक चेतना विकसित करने का उद्देश्य इस पद यात्रा के माध्यम से सामने आया, जिससे उन्हें केवल ‘श्रमिक’ नहीं, बल्कि एक गरिमामय नागरिक के रूप में देखा जाए।

एक साधारण लंगोटा और असाधारण संवेदना
दादरी से आगे बढ़ते हुए जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान सुमन सौरभ चंद्रवंशी को निरंतर पदयात्रा करने से जांघों के मध्य हिस्से में त्वचा संक्रमण (इन्फेक्शन) होने लगा। यह स्थिति अत्यंत असुविधाजनक थी और यात्रा को बाधित कर सकती थी। तभी एक र्सैनिक मित्र अमन कुमार जी ने उन्हें सुझाव दिया कि संक्रमण से बचाव के लिए लंगोटा पहनना लाभकारी होगा।इस सुझाव पर अमल करते हुए सुमन सौरभ पास की एक कपड़े की दुकान से आवश्यक कपड़ा खरीदा और वहीं समीप एक मौलवी साहब, जो सिलाई का कार्य करते थे, से संपर्क किया। मौलवी साहब ने अत्यंत मानवीय संवेदनशीलता का परिचय देते हुए अपने सभी कार्यों को विराम देकर, विशेष रूप से सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी के लिए लंगोटा सिलाई किया।सिलाई के दौरान सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी और मौलवी साहब दोनों के बीच सौहार्द्रपूर्ण संवाद भी हुआ, जिसमें "जय बिहार क्रांति पदयात्रा" के उद्देश्य, प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, और उत्तर प्रदेश के सामाजिक विकास जैसे विषयों पर चर्चा की गई। मौलवी साहब ने सुमन सौरभ चंद्रवंशी को चाय और पानी की पेशकश भी की, जिससे यह प्रसंग केवल एक आवश्यक वस्तु की पूर्ति नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता, आपसी सम्मान और मानवीय संबंधों का प्रतीक बन गया।यह घटना दर्शाती है कि अपने देश के जनमानस में, विविधता के बावजूद, सहयोग और करुणा की भावना गहराई से निहित है। यह यात्रा केवल संघर्षों की नहीं, बल्कि ऐसे छोटे-छोटे मानवीय क्षणों की श्रृंखला थी, जिन्होंने पदयात्री को आत्मबल, मार्गदर्शन और संवेदनात्मक ऊर्जा प्रदान की।
किसान से संवाद
उझनी से बदायूं की ओर अग्रसर होते समय, जय बिहार क्रांति पदयात्रा के दौरान सुमन सौरभ चंद्रवंशी की भेंट एक स्थानीय कृषक (किसान चाचा) से हुई। यह संवाद न केवल एक साधारण भेंट थी, बल्कि ग्रामीण भारत की वास्तविकताओं, आर्थिक चुनौतियों और कृषि नीति से जुड़े प्रश्नों का प्रत्यक्ष अनुभव भी था।उक्त किसान चाचा ने गन्ने की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और बाज़ार दरों में व्याप्त अंतर पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि गन्ना उत्पादकों को उनकी मेहनत और लागत के अनुरूप उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है। उन्होंने सरकार की नीतियों पर प्रश्नचिह्न उठाते हुए सुझाव दिया कि गन्ने के दामों में पारदर्शिता और समयबद्ध भुगतान की व्यवस्था की जानी चाहिए।संवाद के दौरान किसान ने सुमन सौरभ चंद्रवंशी को सादर ताज़ा जल पिलाया और यात्रा की सफलता के लिए आशीर्वाद प्रदान किया। यह क्षण पदयात्री के लिए ग्रामीण भारत की जीवंतता, संघर्ष और सादगी का सजीव अनुभव था—जहाँ सीमित संसाधनों में भी आत्मीयता, संवाद और सहभागिता की भावना विद्यमान रहती है।


यात्रा मार्ग एवं प्रमुख पड़ाव
जय बिहार क्रांति पदयात्रा का आरंभ 28 सितंबर 2023 को दिल्ली स्थित लाल किला से हुआ। यह यात्रा उत्तर प्रदेश के विविध जनपदों, कस्बों, गांवों और सांस्कृतिक स्थलों से होती हुई 18 अक्टूबर 2023 को समापन हुई। मूल रूप से इसका समापन सीतामढ़ी, बिहार में प्रस्तावित था, किंतु स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते यात्रा का समापन अयोध्या में करना पड़ा।इस यात्रा में लगभग 750 किलोमीटर की दूरी पैदल तय की गई, जिसमें अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर रुककर स्थानीय नागरिकों, युवाओं, किसानों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और मजदूर वर्ग से संवाद स्थापित किया गया।रामनगरी अयोध्या में यात्रा का समापन हुआ। यह स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भारत की आत्मा का प्रतीक माना जाता है, जहाँ समापन के साथ यात्रा के उद्देश्यों को संकल्प में परिवर्तित किया गया।यात्रा के दौरान रात्रि विश्राम प्रायः खुले मैदानों, पंचायत भवनों, स्कूल परिसरों अथवा स्थानीय लोगों की सहायता से की जाती रही। यात्रा के अधिकांश हिस्से में स्वावलंबन, और जनसहयोग के आदर्शों का पालन किया गया।
जय बिहार क्रांति पदयात्रा के दौरान सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने दिल्ली से प्रारंभ कर उत्तर प्रदेश के विभिन्न नगरों, कस्बों एवं ग्राम्य क्षेत्रों से होते हुए अयोध्या धाम तक की पदयात्रा की। इस यात्रा में उन्होंने जनसामान्य से संवाद, सामाजिक समस्याओं का प्रत्यक्ष अनुभव, और सांस्कृतिक-सामाजिक एकात्मता का अद्वितीय परिचय प्राप्त किया।यात्रा मार्ग में प्रमुख स्थान इस प्रकार रहे:दिल्ली → दादरी → अनूपशहर → बबराला → सहसवान → उझनी → बदायूं → कुर्सी → बाराबंकी → अयोध्या धामप्रमुख अनुभव और भावनात्मक क्षण•अनूपशहर में, गंगा नदी के पावन तट पर गंगा स्नान किया गया और उसी दिन दादी की पुण्यतिथि होने के कारण उन्होंने श्रद्धापूर्वक नौ केश संस्कार (बाल-दाढ़ी) सम्पन्न किया। इसके पश्चात गंगा आरती एवं मंदिर पूजन कर यात्रा को धार्मिक आस्था से जोड़ते हुए आगे बढ़ाया गया।•बबराला में स्थानीय नागरिकों के साथ "जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के उद्देश्य, प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर विस्तृत संवाद हुआ, जिससे यात्रा का सामाजिक सरोकार और भी गहरा हुआ।•बदायूं के मार्ग में एक स्थानीय किसान से गन्ने के मूल्य और कृषि संबंधी समस्याओं पर विचार-विमर्श हुआ। उक्त किसान ने ताजे जल से सत्कार किया और यात्रा की सफलता हेतु आशीर्वाद प्रदान किया, जो इस पदयात्रा के जनसंपर्क और आत्मीयता को दर्शाता है।पूरे यात्रा मार्ग को एक सांस्कृतिक, सामाजिक और आत्मिक तीर्थ यात्रा का स्वरूप प्राप्त हुआ, जिसमें जनमानस का सहयोग, संवेदनाओं का प्रवाह, और संघर्षों की स्वीकार्यता निरंतर साथ रही।



नाई द्वारा बाल मुंडन और गंगा आरती
अनूपशहर में गंगा नदी के किनारे स्थित एक विशाल मंदिर परिसर में रात्रि विश्राम किया गया। मंदिर के पुजारी ने अगले दिन प्रातः जागृत किया। सुमन सौरभ चंद्रवंशी अपने घर पर फोन किए तो पता चला कि उसी दिन दादीजी की प्रथम पुण्यतिथि (बरसी) की जानकारी मिली। फिर उन्होंने बाल संस्कार के लिए नाई को ढूंढना शुरू किए सुबह सुबह नाई दोस्त नहीं थे सैलून मिला तो सैलून बंद था फिर किसी अन्य व्यक्ति से उनका मोबाइल नंबर लेकर फोन किए फिर वह आए श्रद्धांजलि स्वरूप उन्होंने उसी स्थान पर केश-संस्कार (बाल-दाढ़ी) सम्पन्न किया तथा गंगा स्नान एवं आरती कर मंदिर में पूजन किया। केश संस्कार और गंगा पूजन हो गया तो मैं पुनः उनको पैसा देने गया तो उन्होंने ने बताया कि वह पूरी रात नहीं सोए थे और मुझे रक्षा कर रहे थे और उनसे जय बिहार क्रांति पद यात्रा पर विशेष चर्चा हुआ । उसके बाद फूल बेच रही चाची का पैसा दिए और वहां से आगे के यात्रा पर निकल पड़े।
एक जोड़ी जूते और स्नेह का अमिट निशान
जय बिहार क्रांति पदयात्रा के दौरान एक विशेष प्रसंग ऐसा आया, जिसने धार्मिक एकता, सामाजिक सौहार्द, और निस्वार्थ मानवता की भावना को प्रत्यक्ष रूप में साकार कर दिया।यात्रा के किसी एक पड़ाव पर, जब सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी लगातार पैदल चलते हुए अत्यधिक थकान और घर्षण के कारण पैर में गंभीर छाले से पीड़ित थे, तभी एक मुस्लिम युवक ने उनकी यह अवस्था देखी। उस युवक ने सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी से जय बिहार क्रांति पद यात्रा के उद्देश्य और उनके संकल्प के बारे में संवाद किया और गहराई से प्रभावित हुआ।बिना किसी आग्रह के, वह युवक अपने पास की दुकान से एक नई जोड़ी आरामदायक जूते लाया और उन्हें सप्रेम भेंट किया, ताकि सुमन जी की यात्रा बिना और कष्ट के जारी रह सके। सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी ने वही जूते अयोध्या तक की यात्रा पूरी होने तक पहने। यह जूते केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि उस निस्वार्थ प्रेम और अपनत्व का प्रतीक बन गए, जिसे सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी आजीवन नहीं भूल सकते।इतना ही नहीं, सुमन सौरभ चंद्रवंशी जी द्वारा पहना गया पुराना जूता, जो पहले से छालों और धूल की गवाही दे रहा था, उसे वहीं का एक स्थानीय युवा भाई ने स्मृति स्वरूप (निशानी) के रूप में अपने पास रख लिया। इस भाव ने इस यात्रा को केवल सामाजिक आंदोलन नहीं, बल्कि जन-जन के दिलों को जोड़ने वाला आत्मिक अनुभव बना दिया।यह प्रसंग "जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के उन अनकहे मानवीय क्षणों में से एक है, जो दर्शाते हैं कि यह यात्रा केवल पैरों से नहीं, दिलों से तय की गई यात्रा थी।


गाज़ियाबाद एवं नोएडा क्षेत्र:"जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के अंतर्गत जब यात्रा दिल्ली-एनसीआर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों — गाज़ियाबाद एवं नोएडा — से होकर गुज़री, तब अनेक प्रवासी श्रमिकों, निर्माण कार्यों में संलग्न मजदूरों, और विभिन्न कारखानों एवं फैक्ट्रियों में कार्यरत मेहनतकश कामगारों से संवाद का अवसर मिला। इस संवाद के माध्यम से उनके जीवन के विविध पहलुओं, संघर्षों, कार्य स्थलों की कठिन परिस्थितियों एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों की गहराई को निकट से महसूस किया गया।इन श्रमिकों की कठिन परिश्रमशीलता, अनुशासन, जीवटता एवं आत्मसम्मान ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश की औद्योगिक प्रगति का मूल आधार यही श्रमिक वर्ग है। सीमित संसाधनों और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने परिवार के लिए रोटी, शिक्षा और सुरक्षा का सपना लिए चलने वाले ये लोग हमारे समाज की सबसे सशक्त नींव हैं।यह अनुभव न केवल भावनात्मक रूप से उद्वेलित करने वाला था, बल्कि सामाजिक यथार्थ के धरातल पर श्रमिक सम्मान, सामाजिक सुरक्षा और गरिमामय जीवन के अधिकार जैसे मुद्दों की आवश्यकता को पुनः रेखांकित करता है। यह संवाद "जय बिहार क्रांति पद यात्रा" को जनमानस के साथ और अधिक गहराई से जोड़ने वाला अध्याय सिद्ध हुआ।
गहराता विश्वास, बिगड़ता स्वास्थ्य अयोध्या धाम पहुँचने के पश्चात, जब सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने अपने निर्धारित लक्ष्य की एक महत्वपूर्ण दूरी तय कर ली थी, तभी अचानक उनकी स्वास्थ्य स्थिति में गिरावट दर्ज की गई। उनके अनुसार, ऐसा प्रतीत हुआ कि संभवतः भोजन में किसी प्रकार का मिश्रण किया गया था, जिसके कारण उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) प्रभावित हुई और उन्हें गंभीर शारीरिक अस्वस्थता का अनुभव हुआ।इस अप्रत्याशित स्वास्थ्य संकट के चलते, उन्हें सीतामढ़ी (बिहार) तक यात्रा पूरी करने का पूर्व नियोजित उद्देश्य स्थगित करना पड़ा। यद्यपि यात्रा का भौगोलिक समापन निर्धारित गंतव्य तक नहीं हो सका, किन्तु सुमन सौरभ चंद्रवंशी द्वारा तय की गई यह यात्रा अपने सामाजिक सरोकार, संवेदनशील उद्देश्यों और जनभागीदारी के कारण पहले ही एक ऐतिहासिक संकल्प के रूप में स्थापित हो चुका था ।उन्होंने दिल्ली के लाल किला जैसे राष्ट्रीय प्रतीक स्थल से यात्रा आरंभ किए और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से होते हुए अयोध्या धाम तक पहुँचे। यह पदयात्रा उन प्रवासी श्रमिकों की स्मृति और संघर्ष को सम्मान देने का एक प्रयास था, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय किए थे।अंततः, इस यात्रा ने यह सिद्ध किया कि संकल्प, संवेदना और सामाजिक चेतना के माध्यम से एक नागरिक किस प्रकार सार्वजनिक संवाद और जनजागरण को जन्म दे सकता है, भले ही उसे अपने मार्ग में व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े।

यह प्रसंग जय बिहार क्रांति पद यात्रा के उन अद्भुत क्षणों में से एक है, जहाँ धर्म, संस्कृति और सामाजिक संवाद एक साथ आकार लेते हैं।

अयोध्या धाम की एक भावुक तीर्थयात्रा
अयोध्या धाम की पावन भूमि पर जब मैंने अपने चरण रखे, तभी शरीर अस्वस्थ हो गया। परंतु प्रभु श्रीराम की नगरी में आकर रुक जाना संभव नहीं था। शरीर चाहे साथ दे या न दे, मन और आत्मा प्रभु के दर्शन को व्याकुल था ।मैंने संकल्प लिया और पूरी आस्था के साथ श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पहुँचा। वहाँ प्रभु श्रीराम के दिव्य दर्शन कर अंतर्मन आनंद और भक्ति से भर उठा। आँखों में अश्रु थे, परंतु वो पीड़ा के नहीं, प्रभु प्रेम के थे।दर्शन और पूजा के पश्चात, अगला पड़ाव था हनुमानगढ़ी। शरीर की थकावट के बावजूद बजरंगबली के दर्शन की प्रेरणा भीतर से मिली। वहाँ जाकर संकटमोचन हनुमान जी के दर्शन किए, प्रार्थना की कि प्रभु मेरी आत्मा को और अधिक दृढ़ बनाए।इसके पश्चात, श्री महावीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित राम की रसोई में पहुँचा, जहाँ नि:शुल्क प्रसाद (भोजन) का प्रबंध किया गया था। वहाँ भोजन करते हुए यह अनुभूति हुई कि यह केवल अन्न नहीं, प्रभु की कृपा का प्रसाद है।

सामाजिक संवाद और भावनात्मक
अभिव्यक्तिजय बिहार क्रांति पद यात्रा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक संवाद, जनसंवेदना, और भावनात्मक जुड़ाव की यात्रा भी थी । इस यात्रा के माध्यम से सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने भारत के ग्रामीण जनजीवन, किसानों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं और अल्पसंख्यकों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित किया। यह संवाद केवल औपचारिक परिचय तक सीमित नहीं था, बल्कि उसमें दर्द, आशाएं, शिकायतें और संघर्ष गहराई से समाहित थी ।यात्रा के विभिन्न चरणों में—कभी खेत में बैठकर, कभी मंदिरों के प्रांगण में, तो कभी गली-मोहल्लों में—जनमानस ने अपनी जीवन की वास्तविकताएं, आर्थिक कठिनाइयाँ, सामाजिक असमानता, और राजनीतिक उपेक्षा से जुड़े अनुभव साझा किए। विशेष रूप से किसानों ने फसल के मूल्य, बिजली की अनुपलब्धता, बकाया भुगतान, और नीतिगत असंतोष पर अपने विचार खुलकर प्रकट किए।एक किसान ने भावुक होकर कहा कि उनकी गलती केवल यह है कि वे एक पिछड़े वर्ग से आते हैं, इसलिए उन्हें बार-बार प्रशासनिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। एक अन्य स्थान पर एक युवक ने, सुमन सौरभ के पैरों में छाले देख, उन्हें जूते उपहार में दिए और कहा, "आप हमारे लिए चल रहे हैं, यह हमारा कर्तव्य है कि आपको सहारा दें।"महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों ने भी अपने जीवन के अनुभव, संघर्ष, और आकांक्षाएं साझा कीं। किसी ने अपने मंदिर निर्माण की कथा सुनाई, किसी ने अंतर्जातीय विवाह की सामाजिक स्वीकृति की बात की। इन सभी संवादों में भारत की जमीनी सच्चाई, संवेदनशीलता और सामाजिक जटिलता स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई।यह यात्रा उन अनकहे स्वर और अनुभवों को शब्द देने का माध्यम बनी, जो आमतौर पर नीतियों, मंचों या मीडिया में स्थान नहीं पाते। सुमन सौरभ चंद्रवंशी के लिए यह अनुभव भावनात्मक रूप से गहरे, वैचारिक रूप से प्रेरणादायक, और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध सिद्ध हुआ।


पारिवारिक सहयोग और प्रारंभिक समर्थन :
यात्रा के प्रारंभिक चरण में ही जब सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने अपने संकल्प की घोषणा की, तब उनके परिवार के सभी अभिभावकों(माता-पिता,दादा, दादी, चाचा- चाची फुआ -फूफा मामा -मामी दीदी- जीजा जी, भजा-भांजी,भतीजा,भतीजी, भईया-भावी) सभी बड़े भईया एवं सभी छोटा भाइयों सहित परिवार के अन्य सदस्य , समाज के गणमान्य व्यक्ति ,समाज के और अन्य सदस्य और सभी रिश्तेदार इस निर्णय से प्रभावित होकर दिल्ली पहुँच गए, ताकि यात्रा के आरंभिक चरण में देख-रेख, व्यवस्थापन और प्रशासनिक समन्वय में सहायता कर सकें। उनके साथ-साथ सभी घनिष्ठ मित्रगण भी इस पदयात्रा में सहभागी बने, जिन्होंने यात्रा की कठिनाइयों को साझा कर इसे एकजुटता की मिसाल बनाया।
जन समर्थन और सहयोगजय बिहार क्रांति पद यात्रा को अपने संपूर्ण मार्ग में समाज के विविध वर्गों से अभूतपूर्व जन समर्थन और सहयोग प्राप्त हुआ। यह यात्रा केवल एक व्यक्ति के संकल्प पर आधारित नहीं रही, बल्कि इसे मार्ग में मिले जनसहयोग, आत्मीयता और सहभागिता ने एक जन आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया।
नागरिक और प्रशासनिक सहयोग : यात्रा के दौरान हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली राज्यों के स्थानीय नागरिकों तथा प्रशासनिक इकाइयों ने समय-समय पर आवश्यक सहायता प्रदान की। इन राज्यों के प्रशासन ने रात्रि विश्राम, मार्गदर्शन, स्वास्थ्य जांच, सुरक्षा और आपात सेवाओं की व्यवस्था सुनिश्चित की, जिससे यात्रा सुचारु रूप से आगे बढ़ सकी।
सामाजिक, धार्मिक और युवा संगठनों की सहभागिता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), श्री आचार्य सुदर्शन लायंस क्लब , श्री बगही धाम , श्री तपस्वी नारायण दास जी महाराज,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), श्री राधा स्वामी , बाबा आशुतोष महाराज जी, शिव शिष्य परिवार,स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती परिवार, श्री प्रेमा नन्द महाराज परिवार,श्री काशी विश्वनाथ मंदिर,श्री इस्कॉन, श्री कबीर साहब जी के सभी पंथी,श्री नीम करौली बाबा,मां वैष्णव देवी,पटना हनुमान मंदिर ट्रस्ट एवं अध्यक्ष श्री कुणाल किशोर जी,श्री वैद्यनाथ धाम,श्री पशुपति नाथ ट्रस्ट, मां जानकी जनकपुर,माँ मुंडेश्वरी देवी मंदिर,श्री काशी विश्वनाथ मंदिर,श्री बालाजी सरकार , मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ,मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर और मां कालीघाट काली मंदिर,श्री सिद्धिविनायक मंदिर, श्री महाकाल मंदिर, श्री गरीब नाथ,,कालीघाट काली मंदिर, मां चामुण्डा देवी,और खाटू श्याम जी भक्त मंडल जैसे संगठनों से जुड़े स्वयंसेवकों एवं श्रद्धालुओं ने यात्रा मार्ग में भोजन, आवास, विश्राम एवं भावनात्मक समर्थन की व्यवस्था की। जय गुरुदेव के समस्त श्रद्धालु भक्तों एवं परिवार को हार्दिक धन्यवाद ।और सभी धर्मों के संगठन जिन्होंने सहयोग,मदद,सेवा समर्थन किया उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।सभी अध्यापक एवं सभी छात्र छात्राओं को विशेष आभार एवं श्री कपूरी छात्रावास,बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर कल्याण छात्रावास,और सभी छात्रा वास को भी,आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद। और जिन लोगों का नाम छूट गया होगा उनसे माफी चाहता हु।
प्रवासी मजदूरों का भावनात्मक समर्थन
यात्रा में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने विभिन्न स्थानों पर सुमन सौरभ चंद्रवंशी का आत्मीय स्वागत किया और उन्हें यह अनुभव नहीं होने दिया कि वे अकेले चल रहे हैं। उन्होंने इस यात्रा को अपनी ही पीड़ा की अभिव्यक्ति मानते हुए, अनेक स्थानों पर पदयात्री के साथ कदम से कदम मिलाया, सहयोग किया, और सार्वजनिक संवादों में भाग लिया।
बुजुर्गों और परिवारों की सहभागिता
चंद्रवंशी का आत्मीय स्वागत किया और उन्हें यह अनुभव नहीं होने दिया कि वे अकेले चल रहे हैं। उन्होंने इस यात्रा को अपनी ही पीड़ा की अभिव्यक्ति मानते हुए, अनेक स्थानों पर पदयात्री के साथ कदम से कदम मिलाया, सहयोग किया, और सार्वजनिक संवादों में भाग लिया।इस यात्रा को पीढ़ियों की एकता और सामूहिक चेतना का स्वरूप देने में बुजुर्गों की विशेष भूमिका रही। अनेक दादा-दादी, माताएं, बहनें और बच्चे यात्रा मार्ग में जुड़े, जिन्होंने न केवल भावनात्मक बल दिया, बल्कि सामाजिक सहयोग की भावना को और भी सशक्त किया।
किसान, मजदूर और ग्रामीणों का योगदान
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कई स्थानों पर किसानों से कृषि नीति, गन्ना मूल्य, फसल बीमा और मजदूरी जैसे मुद्दों पर गहन संवाद हुए, जो इस यात्रा को एक प्रामाणिक जनसंवाद मंच बना देते हैं।
सहयोग और सम्मान का प्रतीक : इस यात्रा में प्राप्त सहयोग और सम्मान केवल यात्रा की सफलता के कारक नहीं थे, बल्कि वे भारत की सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और निस्वार्थ सहयोग भावना के साक्षात् उदाहरण भी थे। हर स्थान पर मिले ममता, स्नेह और अपनत्व ने यह प्रमाणित किया कि अपने देश का जनमानस आज भी संघर्षशील व्यक्ति के साथ खड़ा होना जानता है, बशर्ते उसकी नीयत और उद्देश्य समाज हित में हो।
उन सभी विद्युत कर्मचारियों और रसोइया ( भाईयों एवं बहनों) को धन्यवाद जिन्होंने ने विद्युत और शुद्ध खाना समय पर दिए ।
किसानों और ग्रामीण समाज का योगदान
किसान भाइयों ने इस यात्रा में जो योगदान दिया, वह अत्यंत प्रेरणादायक रहा। अक्टूबर की ठंडी रातों में अनेक किसानों ने आग जलाकर विश्रामस्थल की व्यवस्था की, भोजन, चाय और जलपान की व्यवस्था की, और अपनी सहभागिता से यह सिद्ध किया कि ग्रामीण भारत की आत्मा आज भी सहयोग और सेवा की भावना से परिपूर्ण है।
प्रवासी मजदूरों का भावनात्मक समर्थन
यात्रा में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने विभिन्न स्थानों पर सुमन सौरभ चंद्रवंशी का आत्मीय स्वागत किया और उन्हें यह अनुभव नहीं होने दिया कि वे अकेले चल रहे हैं। उन्होंने इस यात्रा को अपनी ही पीड़ा की अभिव्यक्ति मानते हुए, अनेक स्थानों पर पदयात्री के साथ कदम से कदम मिलाया, सहयोग किया, और सार्वजनिक संवादों में भाग लिया।
आभार : मैं उन सभी आदरणीय डॉक्टरों के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान समय-समय पर आवश्यक उपचार एवं चिकित्सीय सहयोग प्रदान किए।मैं अपने हृदय की गहराइयों से सतलोक आश्रम के सभी भक्तों एवं अनुयायियों का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ कि आपने जय बिहार क्रांति पद यात्रा में दिल्ली से लेकर मेरे घर तक हर कदम पर साथ देकर इस ऐतिहासिक यात्रा को सफल बनाने में अमूल्य योगदान दिया।
संस्थागत सहयोग
पतंजलि योगपीठ द्वारा भी यात्रा के दौरान प्राकृतिक चिकित्सा, शारीरिक स्वास्थ्य, और आयुर्वेदिक सहयोग के माध्यम से निरंतर सहयोग प्रदान किया गया। संस्था से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पदयात्री के स्वास्थ्य की नियमित जांच, औषधि वितरण और विश्रामस्थलों की व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाई।आप सभी पत्रकार बंधुओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद ।
समग्र सहभागिताजय
बिहार क्रांति पद यात्रा को सफल बनाने में केवल बिहार राज्य से संबंधित ही नहीं, बल्कि पूरे देश के उन सभी , किसानों, मजदूरों,युवाओं समाजसेवियों, धार्मिक संगठनों, और साधु-संतों,की सहभागिता रही, जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस यात्रा को अपना समर्थन और संसाधन प्रदान किया। यह यात्रा उन सभी का साझा संकल्प और सामाजिक उत्तरदायित्व बन गई।
प्रशासनिक सहयोग
जय बिहार क्रांति पद यात्रा की सफलता में केवल जनसामान्य का ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र का भी उल्लेखनीय योगदान रहा। यात्रा के संपूर्ण मार्ग में विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन ने आवश्यक समन्वय, सुरक्षा, व्यवस्था और आपातकालीन सहयोग प्रदान किया।विशेष रूप से दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के स्थानीय प्रशासन, पुलिस विभाग, स्वास्थ्य इकाइयों एवं नगर पालिकाओं ने यात्रा मार्ग में नियंत्रण, सहयोग और सुविधा सुनिश्चित की। कई स्थानों पर प्रशासन द्वारा प्रवास, मार्गदर्शन, स्वास्थ्य जांच, विश्रामस्थल की व्यवस्था और जन सुरक्षा के लिए सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया।इस सहयोग ने यात्रा को सुरक्षित, व्यवस्थित और जनहितकारी स्वरूप प्रदान करने में अत्यंत सहायक भूमिका निभाई, जिससे यह पदयात्रा सिर्फ एक सामाजिक आंदोलन नहीं, बल्कि प्रशासन और जनता के समन्वय का आदर्श उदाहरण बनकर उभरी।जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के सभी युवा साथियों को साथ और सहयोग करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
"जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के दौरान मार्ग में सुरक्षा एवं सहयोग प्रदान करने वाले सभी सम्माननीय ड्राइवर और मैकेनिक भाइयों के प्रति मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। आपने जिस समर्पण एवं सजगता के साथ यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की, वह अत्यंत सराहनीय एवं प्रेरणादायक है। आपका यह योगदान इस ऐतिहासिक यात्रा को सफल बनाने में अमूल्य रहा। मैं उन समस्त पेट्रोल पंपों के प्रति भी विशेष आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने ने साथ और सहयोग किए है।

श्री खाटू श्याम मंदिर के पुजारी दंपत्ति से विशेष भेंटयात्रा के ही एक अन्य चरण में रात्रि के समय एक श्रद्धालु से भेंट हुई, जो श्री खाटू श्याम जी के मंदिर के पुजारी हैं। उन्होंने रात्रि के अंधकार में कई किलोमीटर तक मार्गदर्शन प्रदान किया और सुरक्षा की भावना को प्रबल किया। प्रातःकाल जब यात्रा खाटू श्याम मंदिर के निकट पहुँची, तब उन्होंने मुझे विश्राम हेतु आमंत्रित किया और चाय की पेशकश की। इस अवसर पर "जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के उद्देश्यों की विस्तृत जानकारी उन्हें दी गई, यद्यपि वे पूर्व से ही इसके विषय में परिचित थे।उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन की कथा साझा की, जो अत्यंत प्रेरणास्पद थी। उन्होंने बताया कि वे स्वयं हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं और उनकी पत्नी दूसरे समुदाय से संबंधित हैं। दोनों ने आपसी प्रेम के कारण विवाह का संकल्प लिया था, परंतु सामाजिक बाधाओं के चलते विवाह संभव नहीं हो पा रहा था। तब उनकी पत्नी ने श्री खाटू श्याम जी के दरबार में मन्नत माँगी कि यदि यह विवाह सफल हुआ तो वे एक भव्य मंदिर की स्थापना करेंगी। ईश्वर की कृपा से उनका विवाह सफल हुआ, और दोनों ने मिलकर एक भव्य श्री खाटू श्याम मंदिर की स्थापना की, जिसकी देखरेख वे आज भी कर रहे हैं। उनकी पत्नी स्वयं मंदिर की मुख्य पुजारिन हैं और नियमित पूजा-अर्चना करती हैं। यह युगल जीवन में सांप्रदायिक सौहार्द, आस्था, और सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान मंदिर अनुभव एवं सामाजिक संवाद
"जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के दौरान एक अत्यंत भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुआ जब यात्रा के क्रम में एक ऐसे मंदिर में विश्राम का अवसर मिला, जहाँ सभी पुजारी महिलाएं थीं। इस मंदिर में यात्रा से कई किलोमीटर पूर्व ही कुछ माताएं, बहनें तथा बच्चे-बच्चियां यात्रा में सहभागी हो गईं थीं, जिन्होंने मंदिर पहुँचने पर मुझे ससम्मान आमंत्रित किया।मंदिर परिसर में एक विशाल एवं सौंदर्यपूर्ण जलकुंड स्थित है, जो मंदिर से सटा हुआ है। इस जलकुंड में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ एवं अन्य जलजीव प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। कुंड की सजावट, स्वच्छता और संरचना अत्यंत आकर्षक एवं मनमोहक है। कुंड के चारों ओर बनी सीढ़ियाँ और बैठने हेतु निर्मित कुर्सियाँ, आगंतुकों को एक विश्राम एवं दर्शन का अनुपम अवसर प्रदान करती हैं। कुंड के किनारे बैठते ही जलजीवों का समीप आ जाना एक अत्यंत अद्भुत अनुभूति थी।मंदिर परिसर में उपस्थित समस्त माताओं एवं बहनों के साथ "जय बिहार क्रांति पद यात्रा" के उद्देश्यों, इसके सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर विशेष चर्चा हुई। सभी ने यात्रा के विचार और मूल्यों की सराहना की तथा उसे जनजागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया।

बौद्ध धर्म के श्रद्धालु अनुयायियों के प्रति आभार ज्ञापनजय
बिहार क्रांति पद यात्रा के पावन अवसर पर बौद्ध धर्म के सभी श्रद्धालु अनुयायियों का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने इस ऐतिहासिक यात्रा में अपने सतत सहयोग, सेवा, और सक्रिय सहभागिता के माध्यम से अतुलनीय योगदान दिया बौद्ध परंपरा में समाहित मैत्री, करुणा, और सह-अस्तित्व की भावना ने इस यात्रा को न केवल एक सामाजिक अभियान बनाया, बल्कि एक मानवीय चेतना का जीवंत प्रतीक भी बना दिया। यात्रा के मार्ग में कई स्थानों पर बौद्ध अनुयायियों द्वारा जो सेवा, सत्कार एवं नैतिक समर्थन प्रदान किया गया, वह न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि सदैव स्मरणीय रहेगा।उनका संयमित व्यवहार, विनम्रता और लोककल्याण की भावना ने 'जय बिहार क्रांति' के उद्देश्यों को और भी सशक्त बनाया।
महत्व और प्रभाव:
जय बिहार क्रांति पद यात्रा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक चेतना, जनसंवाद और संवेदना का प्रतीक बनकर उभरी। यह यात्रा उन प्रवासी मजदूरों, किसानों, और वंचित वर्गों की पीड़ा को समाज के समक्ष लाने का एक सशक्त माध्यम बनी, जिन्हें अक्सर नीतिगत विमर्श से बाहर रखा जाता है।इस पदयात्रा ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि एक सामान्य नागरिक भी संवेदनशीलता, साहस और संकल्प के साथ समाज में सकारात्मक बदलाव की दिशा में पहल कर सकता है। यात्रा के दौरान किए गए संवादों, जनसंपर्क और प्रत्यक्ष अनुभवों ने समाज के विभिन्न वर्गों को एक साझा मंच पर लाने का कार्य किया।इस आंदोलन ने न केवल प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को सार्वजनिक विमर्श में पुनः स्थापित किया, बल्कि राज्य और केंद्र सरकारों का ध्यान भी श्रमिक हितों, सामाजिक सुरक्षा, और नीतिगत सुधारों की ओर आकृष्ट किया।यात्रा का प्रभाव दीर्घकालिक है — यह एक उदाहरण बन गई कि सामाजिक परिवर्तन केवल भाषणों से नहीं, बल्कि पथिक के संकल्प, पीड़ा की समझ और जनसहयोग से जन्म लेता है।मैं उन सभी पूज्य गुरु जी के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान मार्गदर्शन प्रदान किया और इस कठिन यात्रा को सफल एवं सार्थक बनाने में अमूल्य योगदान दिया।आप सभी गुरुओं को मेरा हृदय से धन्यवाद और श्रद्धापूर्ण नमन। 🙏


ऐतिहासिक महत्वजय
बिहार क्रांति पद यात्रा भारतीय सामाजिक परिदृश्य में एक मौन किंतु प्रभावशाली आंदोलन के रूप में चिन्हित की जा सकती है। यह यात्रा विशेष रूप से उन प्रवासी श्रमिकों, किसानों और मजदूरों की पीड़ा को रेखांकित करने का प्रयास थी, जो महामारी, आर्थिक असमानता और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण सामाजिक तंत्र के सबसे कमजोर कड़ी के रूप में सामने आए।इस यात्रा की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि इसे बिना किसी राजनीतिक मंच या संस्थागत समर्थन के, एक स्वतंत्र युवा सामाजिक कार्यकर्ता, सुमन सौरभ चंद्रवंशी, द्वारा निजी स्तर पर आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य केवल विरोध या प्रदर्शन नहीं था, बल्कि जनमानस की पीड़ा को प्रत्यक्ष अनुभव कर संवेदना, सहानुभूति और सामाजिक उत्तरदायित्व को जागृत करना था।यह पदयात्रा यह सिद्ध करने का प्रतीक बन गई कि एक सामान्य नागरिक भी, यदि उसमें संवेदनशीलता, साहस और संकल्प हो, तो वह समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में जागरूकता और संवाद उत्पन्न कर सकता है। यह यात्रा भविष्य में ऐसे नागरिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में देखी जा सकती है, जहाँ व्यक्तिगत प्रतिबद्धता जनचेतना में परिवर्तित हो जाती है।
भावनात्मक समापन
जय बिहार क्रांति पद यात्रा का समापन एक अत्यंत भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव के साथ सम्पन्न हुआ। यद्यपि यात्रा का मूल उद्देश्य सीतामढ़ी (बिहार) तक पैदल पहुँचना था, किंतु अयोध्या धाम पहुँचने के पश्चात सुमन सौरभ चंद्रवंशी के स्वास्थ्य में अचानक गिरावट आई। अस्वस्थता के बावजूद उन्होंने अपने संकल्प को अधूरा नहीं माना।अयोध्या, जो कि भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है, से उन्होंने बस द्वारा सीतामढ़ी प्रस्थान किया। अपने गृह आगमन के उपरांत उन्होंने पहले अपनी माता-पिता का आशीर्वाद प्राप्त किया, तत्पश्चात धाम की अधिष्ठात्री देवी माता जानकी की कृपा प्राप्त कर, उन्होंने इस ऐतिहासिक यात्रा का आध्यात्मिक समापन किया।इस समापन ने यात्रा को केवल भौतिक नहीं, बल्कि आत्मिक एवं सांस्कृतिक पूर्णता प्रदान की। यह यात्रा एक संवेदनशील नागरिक के संकल्प, संघर्ष और जनसंपर्क का प्रतीक बनकर समाप्त हुई, जिसमें समाज के हर वर्ग का सहयोग, समर्थन और आशीर्वाद समाहित था।


सफाईकर्मियों के नाम धन्यवाद संदेश
स्वच्छता के अदृश्य नायकों को सादर नमन
मैं अपने हृदय की गहराइयों से उन सभी सफाईकर्मियों का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने जय बिहार क्रांति पद यात्रा के दौरान अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए सफाई एवं स्वच्छता बनाए रखने में अतुलनीय योगदान दिया।आपने बिना किसी दिखावे के, निःस्वार्थ भाव से कठिन परिस्थितियों में भी दिन-रात परिश्रम किया, ताकि सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता बनी रहे और हम सबका स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके। आपकी सेवा न केवल भौतिक सफाई तक सीमित रही, बल्कि आपने अपने कार्य से समाज को यह सिखाया कि स्वच्छता केवल एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक संस्कार है।आपके श्रम, अनुशासन और समर्पण ने इस यात्रा को सफल और सम्मानजनक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब हम सड़क पर थे, हमारे पहुँचने से पहले ही रास्तों को साफ-सुथरा और व्यवस्थित कर दिया, ताकि हम सम्मान के साथ आगे बढ़ सकें।मैं आप सभी सफाईकर्मियों को तहे दिल से धन्यवाद देता हूँ और आपके प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करता हूँ। आप समाज के असली नायक हैं, जिनकी सेवा के बिना कोई भी सार्वजनिक आयोजन संपूर्ण नहीं हो सकता।आपका योगदान अमूल्य है – और हम आपके ऋणी हैं।
पदयात्री का संदेश
सुमन सौरभ चंद्रवंशी ने जय बिहार क्रांति पद यात्रा के समापन अवसर पर एक भावनात्मक और कृतज्ञता-पूर्ण संदेश समाज के नाम व्यक्त किया। उनके शब्दों में यह यात्रा केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि भारत के करोड़ों श्रमिकों की आवाज़ थी, जिनके संघर्ष, पीड़ा और संकल्प ने इस राष्ट्र को जीवित रखा।"यह यात्रा मेरी नहीं थी; यह उन करोड़ों भारतीय प्रवासी मजदूरों की यात्रा थी, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष किया, थके नहीं, रुके नहीं, और झुके नहीं। मैं मात्र उनका एक विनम्र दूत बना।"उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस यात्रा के माध्यम से वे प्रवासी श्रमिकों की वेदना को करीब से महसूस कर सके, किंतु वास्तविक पीड़ा उन श्रमिकों की थी जिन्होंने वास्तविक भूख, दर्द और उपेक्षा का सामना किया।"मैं इस यात्रा के माध्यम से प्रवासी मजदूरों के संघर्ष को महसूस कर सका, परंतु उनका वास्तविक दर्द मुझसे कई गुना अधिक था।""मुझे यात्रा के मार्ग में जो स्नेह, सहयोग और आत्मीयता प्राप्त हुई, वह जीवनपर्यंत स्मरणीय रहेगा। मैं प्रत्येक उस व्यक्ति के प्रति आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस यात्रा को संभव बनाया।"यह संदेश यात्रा की विनम्रता, उद्देश्य और सामाजिक प्रतिबद्धता को उजागर करता है और इस पदयात्रा को एक जनआंदोलन के संवेदनात्मक समापन में परिवर्तित करता है।